तेरी ज़िन्दगी में रौशनी की कमी थी , मैंने खुद को जला दिया
तेरे आँचल में ममता की कमी थी ,मैंने खुद को भुला दिया |
जो तूने ख्वाब देखे पर्वतों से ,सीढ़ी हुआ मैं
जो तेरे दर्द दरिया से थे मैं डूबा था उनमें |
लड़कपन में ही तूने छीन ली मासूमियत मेरी ,
उमर भर रौंदती रहती थी तू मक़बूलियत मेरी |
हर इक दिन बीतता जाता मेरा अग्निपरीक्षा सा ,
गुज़ारा दिन सदा हर एक है मैंने तितीक्षा सा |
मेरे हर कर्म को तूने बताया धर्म मेरा,
कभी तौला नहीं तूने हृदय का मर्म मेरा |
फिकर ना थी तुझे कैसे जियेगा लाल ये तेरा ,
कभी पूछा नहीं तूने पलट कर हाल भी मेरा |
मेरी अर्धांगिनी-संतान की क्या बात मैं पूछूं ,
ये तेरे कौन होते हैं तुझे जब मैं न था प्यारा |
तेरे आँचल के सदके बंद खुद को कर गया मैं कोठरी में
इक अश्रु भी ना था मेरे लिए ममता की तेरी पोटली में |
तेरी हर कोख़ की दुःख से हिफाज़त मैंने की थी
तेरे हर एक वादे की ज़मानत मैंने दी थी |
तेरा न तख़्त हिल जाए ,वहां खुद बिछ गया मैं ,
जलाने को तेरा चूल्हा खुद उसमें जल गया मैं
मगर जीवन में जब लाचार पाया खुद को मैंने ,
मैं ये न जानता था तू ही मुझसे पूछ देगी
किया है क्या बताओ तुमने अब तक वास्ते मेरे ,
लगाए खुद ही बेड़े पार मैंने आजतक मेरे |
मेरे बच्चों में था सामर्थ्य ,बड़े वो हो गए
स्वयं ही जड़ जमा कर के खड़े वो हो गए |
मगर क्यों भूलती है तू ओ मेरी जन्मदाती
बिना मिटटी के न जीता धरा पर वृक्ष कोई |
मैं वो मिटटी हूँ जो आधार है बगिया का तेरी ,
मुझे धिक्कार कर तू स्वयं का अपमान ना कर |
तेरा ही अंश था मैं ,तेरा ही वंश था मैं
मगर तेरे लिए निश्चय ही कोई दंश था मैं
मैं खुद को खोखला करता गया ,ऐ माँ तेरे सदके
मगर ना जान पाया अब भी क्या तू चाहती थी |
तेरे आँचल में ममता की कमी थी ,मैंने खुद को भुला दिया |
जो तूने ख्वाब देखे पर्वतों से ,सीढ़ी हुआ मैं
जो तेरे दर्द दरिया से थे मैं डूबा था उनमें |
लड़कपन में ही तूने छीन ली मासूमियत मेरी ,
उमर भर रौंदती रहती थी तू मक़बूलियत मेरी |
हर इक दिन बीतता जाता मेरा अग्निपरीक्षा सा ,
गुज़ारा दिन सदा हर एक है मैंने तितीक्षा सा |
मेरे हर कर्म को तूने बताया धर्म मेरा,
कभी तौला नहीं तूने हृदय का मर्म मेरा |
फिकर ना थी तुझे कैसे जियेगा लाल ये तेरा ,
कभी पूछा नहीं तूने पलट कर हाल भी मेरा |
मेरी अर्धांगिनी-संतान की क्या बात मैं पूछूं ,
ये तेरे कौन होते हैं तुझे जब मैं न था प्यारा |
तेरे आँचल के सदके बंद खुद को कर गया मैं कोठरी में
इक अश्रु भी ना था मेरे लिए ममता की तेरी पोटली में |
तेरी हर कोख़ की दुःख से हिफाज़त मैंने की थी
तेरे हर एक वादे की ज़मानत मैंने दी थी |
तेरा न तख़्त हिल जाए ,वहां खुद बिछ गया मैं ,
जलाने को तेरा चूल्हा खुद उसमें जल गया मैं
मगर जीवन में जब लाचार पाया खुद को मैंने ,
मैं ये न जानता था तू ही मुझसे पूछ देगी
किया है क्या बताओ तुमने अब तक वास्ते मेरे ,
लगाए खुद ही बेड़े पार मैंने आजतक मेरे |
मेरे बच्चों में था सामर्थ्य ,बड़े वो हो गए
स्वयं ही जड़ जमा कर के खड़े वो हो गए |
मगर क्यों भूलती है तू ओ मेरी जन्मदाती
बिना मिटटी के न जीता धरा पर वृक्ष कोई |
मैं वो मिटटी हूँ जो आधार है बगिया का तेरी ,
मुझे धिक्कार कर तू स्वयं का अपमान ना कर |
तेरा ही अंश था मैं ,तेरा ही वंश था मैं
मगर तेरे लिए निश्चय ही कोई दंश था मैं
मैं खुद को खोखला करता गया ,ऐ माँ तेरे सदके
मगर ना जान पाया अब भी क्या तू चाहती थी |
Speechless...you said it all
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