मुझे मालूम था पीछे मेरा उपहास करते थे ,
भले हीं सामने बनते भले थे |
मेरी दुश्वारियां करतीं प्रसन्न तुमको ,
मेरी उपलब्धियों पर तुम जले थे |
थे कैसे तुम सगे ? उमर भर जो ठगे ,
ठगे उसको जो तुमसा था ,तुम्हीं से था,तुम्हारा था ,
न मानो तुम मगर तुम सा हीं था वो भी दुलारा था |
किया था पाप क्या मैनें जो ना सम्मान पाया ?
क्या सच्चा और सरल होना जहाँ में पाप है ?
तरसता रह गया ताउम्र माँ के प्यार को ,
कभी पाया नहीं अपने किसी अधिकार को ,
लड़कपन में ही वंचित हो गया था पितृ से मैं ,
उमर भर को तिरस्कृत मातृ से था जानें क्यों मैं ?
नहीं मालूम वो क्या पाप मुझसे कोख़ में ही हो गया,
जनम के साथ हीं मैं माँ को जानें क्यों पराया हो गया ।
मेरे अपनों ने मुझको उम्र भर तौला कसौटी पर ,
न जाने क्या कसौटी थी जिसे पूरा न था मैं ?
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