१) चलना संभल कर राह में भटकाव हैं ढेरों ,
रुकना नज़र भर देख के ठहराव हैं ढेरों ,
नहीं घबराना अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलों से ,
अँधेरी रात में भी जुगनुओं की छाँव हैं ढेरों |
२) अब न होगी उनके दायरों में रौशनी कहीं ,
की वो जो रौशनी थे रौशनी खुद हो चले |
३) ज़बरदस्ती के निगेह्बां थे जो कभी ,वो ये गलियां छोड़ चले ,
क्या इक नज़र के बंद होने से यूँ नज़रें बदलती हैं |
४)
रुकना नज़र भर देख के ठहराव हैं ढेरों ,
नहीं घबराना अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलों से ,
अँधेरी रात में भी जुगनुओं की छाँव हैं ढेरों |
२) अब न होगी उनके दायरों में रौशनी कहीं ,
की वो जो रौशनी थे रौशनी खुद हो चले |
३) ज़बरदस्ती के निगेह्बां थे जो कभी ,वो ये गलियां छोड़ चले ,
क्या इक नज़र के बंद होने से यूँ नज़रें बदलती हैं |
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