Friday, October 17, 2014

१) चलना संभल कर राह में भटकाव हैं ढेरों ,

रुकना नज़र भर देख के ठहराव हैं ढेरों ,

नहीं घबराना अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलों से ,

अँधेरी रात में भी जुगनुओं की छाँव हैं ढेरों |


२) अब न होगी उनके दायरों में रौशनी कहीं ,
    
     की वो जो रौशनी थे रौशनी खुद हो चले |

३) ज़बरदस्ती के निगेह्बां थे जो कभी ,वो ये गलियां छोड़ चले ,

     क्या इक नज़र के बंद होने से यूँ नज़रें बदलती हैं |

४)
    
    
 

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