देव कि कमीज़ की पॉकेट से निकल कर कुछ गिरा था | शायद कोई सिक्का था जो लुढ़क कर बिस्तर के नीचे चला गया था | हनु ने ध्यान नहीं दिया | उसे पटाखे चलाने थे | पापाजी ने पटाखों का एक बड़ा पैकेट खरीद दिया था उसे | खुश था वो | दिवाली उसके लिए बड़ा खास पर्व था | बहुत मज़ा आता था उसे पटाखे चलने में | दीयों और मोमबत्तियों की झिलमिल रौशनी ,जैसे तारे स्वयं उतर आए हों धरती पर | उसे बचपन से हीं पौराणिक कहानियां बहुत पसंद थीं और देव ,उसके पिता , तो जैसे पूर्व जन्म के वेद व्यास हीं थे | देवी देवताओं की कहानियां इतने शानदार ढंग से सुनाया करते जैसे अपनी आँखों के सामने देखा हो सब | और नन्हा हनु बचपन से हीं जैसे उन कहानियों को अपने सामने जीवंत होते देखता | जैसा नाम था उसका , उसे रामायण के श्रीराम बड़े पसंद थे और हर दिवाली पर वो ऐसे खुश होता ,जैसे राम वनवास से लौट कर सीधे उसके पास हीं आएँगे |
वर्षों से माँ दिवाली पर पकौड़े बनाती थी पर इस साल ऐसा नहीं होगा | शायद पापाजी की तबियत का ध्यान रखते हुए माँ ने ऐसा किया है | इस साल लड्डू की जगह बताशे चढाए गए हैं पूजा पे | भैया का चेहरा उदास सा है |
हनु को पता है | भैया को लड्डू बहुत पसंद हैं | पर हमेशा उधम मचाने वाली सीनू दीदी भी आज बड़ी शांत सी है | चुपचाप बाहर बरामदे की सीढियों पर बैठी है | भैया इधर उधर घूम रहे हैं ,बेचैन हैं | पर हनु का ध्यान अभी पटाखों की तरफ लगा हुआ है| पूजा हो गई है और अब उसे पटाखे छुड़ाने हैं | इस बार पटाखे कम हैं ,पर बड़ी बात ये है की पापाजी के साथ बाज़ार गया था पटाखे लेने | अजीब विडम्बना थी कि पापाजी के साथ कोई त्यौहार मानाने का मौका उनके बीमार होने पे मिलता था | वरना पुलिस की नौकरी !
अभी शाम की ही तो बात थी , देव हर साल की तरह लाटरी खरीदने जा रहे थे | दिवाली का शगुन | हनु साथ हो लिया | बुलेट की सवारी मिलती तो बात कुछ और थी ,पर पापाजी के साथ बाज़ार जाना वैसे भी बड़ी बात थी | लाटरी खरीदते वक़्त अंक ज्योतिष का पूरा ध्यान रखा गया | पांच टिकट दो दो रूपए के, पांचो बच्चों के मूलांक के हिसाब से | आजकल देव ने पान खाना बहुत कम कर दिया है ,दो तीन दिन में एक आध पान खा लेते हैं | कभी कभी च्युइंग गम से अपनी तलब मिटाने की कोशिश करते हैं | वापसी में हनु के पैर ठिठक गए | पटाखे !
पापाजी ने एक बड़ा पैकेट लिया | सौ पटाखों वाला | हनु की तो मानो अभी लाटरी लग गई | पापाजी कभी मना नहीं करते हैं,बेस्ट पापा हैं !
हनु को जैसे अचानक याद आया ! पापाजी की कमीज़ की पॉकेट से कुछ गिरा था | पलंग के नीचे घुसने पर उसे एक सिक्का मिला, पचास पैसे का ! वो उसे वापस पापाजी की पॉकेट में डालता है | पॉकेट खाली है | पापाजी की सीक्रेट पॉकेट देखी | खाली ! हिसाब जोड़ते जोड़ते उसे समझ में आता है कि माँ ने पकौड़े नहीं बनाए क्योंकि तेल के लिए पैसे नहीं थे | भैया उदास थे क्योंकि बताशे भी तोड़ कर पूजा में चढ़ाए गए थे | सीनू दीदी शांत थी क्योंकि ऐसे हालात में कोई चहक नहीं सकता |
हनु अब स्तब्ध खड़ा था | एक हाथ में पटाखों का पैकेट | दुसरे में पचास पैसे का सिक्का | वो सिक्का ,जो पल पल बड़ा होता जा रहा था | उसमे उसे अपने घरवाले दिख रहे थे | पैसे बचाने के बहाने करते हुए | उसने खुद को भी देखा | पटाखों की फरमाइश करते हुए | पापाजी कभी मना नहीं करते हैं | बाहर आतिशबाजियां हो रहीं हैं ,पर उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है | पचास पैसे का सिक्का उसपर हंस रहा है | दीपावली बेकार का पर्व है ,पैसों की बर्बादी | हम लोग पर्व मनाते हीं क्यों हैं ? अमीर लोग अपनी अमीरी दिखाने के लिए | गरीब लोग अपनी गरीबी दिखाने के लिए | पचास पैसे का सिक्का अब भी उसपे हंस रहा है | पूजा पर रखे दिए की आग में दिवाली जल रही है और पुष्पक विमान भी | सब जल गया | कुछ राख बची ,कुछ धुंआ हो गया | श्रीराम अब कभी नहीं आएँगे |
सिक्के का हँसना कम हो गया है या शायद हनु में इतनी ताक़त नहीं बची की कुछ सुन सके | वो खुद को मरा हुआ महसूस कर रहा है | वो अब शायद कभी दिवाली नहीं मना पाएगा | पचास पैसे का सिक्का उसे मनाने नहीं देगा |