श्रीकृष्ण कहते हैं तब एक कृष्णा थी सहायता करने को, आज लाखों हैं। कहाँ कहाँ जाऊँ ? किस किस की सहायता करूँ ?
अब सीता या द्रौपदी बन के प्रतीक्षा करने का युग नहीं, अब युग है दुर्गा हो कर शत्रु संहार करने का।
श्रीकृष्ण कहते हैं ये कलियुग है। अपनी सहायता जो स्वयं ना करे उसकी सहायता स्वयं मैं भी नहीं कर सकता।
श्रीकृष्ण कहते हैं कलम या पेंसिल उठा और कुदृष्टि को क्षतविक्षत कर दे। श्रीकृष्ण कहते हैं घुटना मोड़ और टाँगों के बीच मार दे। श्रीकृष्ण कहते हैं मुट्ठी बांध और ऊँगली मोड़ कर पसलियों के बीच मार, दो उँगलियाँ आँखों के बीच घुसेड़ दे, एक मुक्का काँख में मार दे। जो दुपट्टा अपनी इज्जत ढकने को कंधे पर रखा है उसमें एक पत्थर बांध और फोड़ दे सर उसका जो तेरी तरफ़ कुदृष्टि डाले।
श्रीकृष्ण कहते हैं तू स्त्री है। कर्म अनुसार अपनी इच्छा से अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, सरस्वती, धरती बनती है तो कर्म अनुसार काली और दुर्गा बनना क्यूँ भूल जाती है ? इतिहास प्रमाण है की पुरुष सदैव राम नहीं रहा। वो अपनी वासना पूर्ति हेतु रावण भी बना है। ये युग वेदवती की तरह स्वयं का नहीं स्वयं हीं उन कामपिपासु पिशाचों का अंत करने का है, स्वयं हीं। किसी की प्रतीक्षा मत कर, शस्त्र उठा और संहार कर।
अब सीता या द्रौपदी बन के प्रतीक्षा करने का युग नहीं, अब युग है दुर्गा हो कर शत्रु संहार करने का।
श्रीकृष्ण कहते हैं ये कलियुग है। अपनी सहायता जो स्वयं ना करे उसकी सहायता स्वयं मैं भी नहीं कर सकता।
श्रीकृष्ण कहते हैं कलम या पेंसिल उठा और कुदृष्टि को क्षतविक्षत कर दे। श्रीकृष्ण कहते हैं घुटना मोड़ और टाँगों के बीच मार दे। श्रीकृष्ण कहते हैं मुट्ठी बांध और ऊँगली मोड़ कर पसलियों के बीच मार, दो उँगलियाँ आँखों के बीच घुसेड़ दे, एक मुक्का काँख में मार दे। जो दुपट्टा अपनी इज्जत ढकने को कंधे पर रखा है उसमें एक पत्थर बांध और फोड़ दे सर उसका जो तेरी तरफ़ कुदृष्टि डाले।
श्रीकृष्ण कहते हैं तू स्त्री है। कर्म अनुसार अपनी इच्छा से अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, सरस्वती, धरती बनती है तो कर्म अनुसार काली और दुर्गा बनना क्यूँ भूल जाती है ? इतिहास प्रमाण है की पुरुष सदैव राम नहीं रहा। वो अपनी वासना पूर्ति हेतु रावण भी बना है। ये युग वेदवती की तरह स्वयं का नहीं स्वयं हीं उन कामपिपासु पिशाचों का अंत करने का है, स्वयं हीं। किसी की प्रतीक्षा मत कर, शस्त्र उठा और संहार कर।